ब्रिज़्बन में भारतीय काँसुलावास में हिंदी दिवस समारोह भारतीय काउनसलेट श्रीमती अर्चना सिंह जी के संग बहुत उत्साह से मनाया गया। भारत के विभिन्न प्रान्तों की नारियों ने हिंदी के महत्व को अपनी मीठी वाणी में बतलाया व बच्चों ने भी भाग लिया। आदरणीय अर्चना जी के शब्दों में “ भाषा हमारी संस्कृति और इतिहास का दर्पण है। यदि हमें अपनी भाषा पर गर्व नहीं तो हम अपने आप को हीन दृष्टि से देखेगें। माता, पिता, गुरुजनों का आदर करना, अतिथि देवों भव। ये जो संस्कार, संस्कृति हमें विरासत में मिली है तो हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी युवा पीढी को अवश्य अवगत करवाएँ। हिंदी भाषा, संस्कृति व हिंदी साहित्य को प्रोत्साहन देना चाहिये”।
कवयित्री शिपरा शर्मा ने स्नेह भरी पंक्तियों में माँ का शुक्रिया किया जिन्होंने विरासत में हिंदी भाषा का ख़ज़ाना दिया। आठवीं कक्षा के कृशिव शर्मा के उत्तम विचार कविता रूप में सुनने को मिले “वह भारत का इतिहास व वेद ग्रंथ समझने के लिये हिंदी सीखना चाहते हैं”।
हिमाचल प्रदेश देव भूमि से आई रजनी चौधरी ने विलक्षण रूप से प्रवासी भारतीयों में हिंदी भाषा के प्रयोग को बतलाया। सभी प्रांतों में हिंदी भाषा के बोलने के उच्चारण की विविधता बतलायी। प्रवासी भारतीयों में हिंदी भाषा बहुत प्रसिद्द है। रजनी चौधरी व मधु खन्ना “ऑस्ट्रेलीयन इंडिंयन रेडीओ” के प्रसारण द्वारा हिंदी का बहुत भव्यता से प्रचार करती हैं व अपनी सभ्यता व संस्कृति के बारे में बतलाती हैं।
कवयित्री एकता शर्मा की स्वर्ण पंक्ति “आओ हिंदी बोलें, हिंदी सीखें और हिंदी सिखलायें”
संग ही उत्तम रूप से हिंदी का इतिहास बतलाया। १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस व १४ सितंबर को हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत १९४९ से हुई थी।
नीतू सिंह मलिक सुहाग के कथित शब्दों में “यह भारतीयों के लिये गर्व का क्षण था जब भारत की संविधान सभा ने हिंदी को आधिकारिक राजभाषा के रूप में अपनाया था”
देशभक्ति से परिपूर्ण डॉक्टर मानसी किनारीवाला ने अपने मधुर स्वर में “वन्देमातरम” सुना कर हिंदी दिवस को शोभायमान किया।
कवयित्री व अधिगम अक्षमता की शिक्षक मधु खन्ना ने एक सूत्रधार का कार्य किया व प्रख्यात कवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्ति से सभी का हृदय आनंदित किया।
“मेरी भाषा में तोते भी राम राम जब कहते हैं
मेरे रोम रोम में मानो सुधा स्त्रोत से बहते हैं”
मधु खन्ना।